मेट्रो कला में छिपी स्थानीय संस्कृति के अनमोल रत्न जानने के बाद आप कहेंगे कि पहले क्यों नहीं जाना

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मैंने हमेशा महसूस किया है कि किसी भी शहर की धड़कन उसकी सड़कों और गलियों में नहीं, बल्कि उसकी दीवारों और सार्वजनिक स्थानों पर बोले गए अनकहे शब्दों में छिपी होती है। खासकर जब बात सबवे आर्ट की आती है, तो यह सिर्फ रंगीन दीवारें नहीं रह जातीं; ये तो उस जगह की आत्मा का आईना बन जाती हैं। मुझे याद है, जब मैं पहली बार दिल्ली मेट्रो के कुछ स्टेशनों पर गया था, तो वहाँ की कलाकृतियों ने मुझे एकदम से बाँध लिया था – हर पेंटिंग, हर भित्तिचित्र उस शहर की कहानी कह रहा था, उसकी सांस्कृतिक विरासत, उसके त्यौहार, यहाँ तक कि उसकी रोज़मर्रा की जिंदगी की हलचल भी उसमें जीवंत थी।यह केवल सौंदर्यीकरण नहीं है, बल्कि एक गहरा सांस्कृतिक आदान-प्रदान है। हाल के दिनों में, मैंने देखा है कि कैसे यह कला अब केवल अतीत की गाथाएँ नहीं कह रही, बल्कि समकालीन मुद्दों, सामाजिक न्याय और भविष्य की उम्मीदों को भी आवाज़ दे रही है। कलाकार अब केवल ब्रश से नहीं, बल्कि डिजिटल प्रोजेक्शन और इंटरैक्टिव इंस्टॉलेशन के माध्यम से भी अपनी बात रख रहे हैं, जो शहरी जीवन के बदल रहे स्वरूप का प्रतीक है। यह कला अब सिर्फ देखने के लिए नहीं, बल्कि महसूस करने और जुड़ने के लिए है। यह हमें सोचने पर मजबूर करती है कि हमारा शहर क्या है, क्या बन रहा है, और हम उसमें कहाँ खड़े हैं।आइए, नीचे दिए गए लेख में विस्तार से जानें।

मुझे आज भी याद है, जब मैं पहली बार मुंबई की लोकल ट्रेन में सफ़र कर रहा था और दादर स्टेशन पर उतरते ही मैंने दीवारों पर बनी अद्भुत कलाकृतियों को देखा। वो सिर्फ पेंटिंग नहीं थीं, बल्कि मुंबई की धड़कन थीं – वहाँ की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी, सपनों का पीछा करते लोग, और गणेश चतुर्थी के दौरान की रौनक, सब कुछ उसमें सजीव हो उठा था। ऐसा लगा, जैसे दीवारों ने खुद शहर की कहानी कहनी शुरू कर दी हो। यह अनुभव मुझे बार-बार सोचने पर मजबूर करता है कि कैसे मेट्रो आर्ट सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि शहरी जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुकी है, जो हमारी रोज़मर्रा की यात्राओं को कलात्मक और अर्थपूर्ण बनाती है। यह कला हमें सिर्फ सौंदर्य ही नहीं देती, बल्कि हमें अपने शहर से, उसकी विरासत से, और उसके लोगों से गहरे स्तर पर जोड़ती है। यह किसी भी शहर की सांस्कृतिक पहचान को सशक्त बनाने का एक अनोखा और प्रभावशाली तरीका है।

शहर की पहचान का जीवंत रंगमंच: मेट्रो आर्ट

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1. दीवारों पर बोलती कहानियाँ और भावनाएँ

जब हम मेट्रो स्टेशनों पर कलाकृतियाँ देखते हैं, तो वो सिर्फ सुंदर चित्र नहीं होते; वे उस शहर की आत्मा, उसकी परंपराओं और उसके बदलते परिवेश की कहानियाँ सुनाते हैं। मुझे महसूस हुआ है कि दिल्ली मेट्रो की दीवारों पर कभी कुतुब मीनार और इंडिया गेट की भव्यता दिखाई देती है, तो कभी होली और दिवाली जैसे त्योहारों का उल्लास। बेंगलुरु मेट्रो में तकनीक और प्रकृति का सामंजस्य झलकता है, जबकि कोलकाता मेट्रो में दुर्गा पूजा और साहित्यिक विरासत की झलक मिलती है। यह सब देखकर मन में एक अजीब सा अपनापन और गौरव का भाव उमड़ता है। यह कला हमें सिर्फ उस शहर के पर्यटक स्थलों के बारे में ही नहीं बताती, बल्कि वहाँ के लोगों की भावनाओं, उनकी संघर्षों और उनकी जीत की कहानियाँ भी साझा करती है। यह सिर्फ देखने का अनुभव नहीं, बल्कि महसूस करने का, जुड़ने का और शायद थोड़ा ठहरकर सोचने का भी अनुभव है। मैं अक्सर अपनी यात्राओं के दौरान इन कलाकृतियों के सामने रुककर उनके पीछे की कहानी और कलाकारों की मेहनत को समझने की कोशिश करता हूँ, और मुझे लगता है कि यह सचमुच एक अद्भुत तरीका है शहरी जीवन को गहराई से महसूस करने का।

2. हर स्ट्रोक में छिपी सांस्कृतिक विरासत और आधुनिकता का संगम

मैंने देखा है कि कैसे कलाकार अब सिर्फ पारंपरिक कला रूपों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे आधुनिक तकनीकों और समकालीन विषयों को भी इसमें शामिल कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, मैंने चेन्नई मेट्रो में देखा है कि कैसे भरतनाट्यम और लोक नृत्य की छवियों को आधुनिक ग्राफिक डिज़ाइन के साथ seamlessly integrate किया गया है। यह दिखाता है कि हमारी सांस्कृतिक विरासत सिर्फ अतीत में नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य में भी जीवित है। यह मेट्रो आर्ट सिर्फ पुरानी कहानियों को दोहराने के लिए नहीं है, बल्कि नए संवाद शुरू करने, आधुनिक चुनौतियों पर प्रकाश डालने और भविष्य की कल्पना करने के लिए भी एक शक्तिशाली माध्यम बन रही है। यह कला हमें यह भी सिखाती है कि कैसे परंपरा और आधुनिकता एक साथ मिलकर एक नया और समृद्ध अनुभव दे सकते हैं। मेरा मानना ​​है कि यह कला हमें न केवल अपने अतीत से जोड़ती है, बल्कि हमें भविष्य के लिए प्रेरित भी करती है, और यह शहरों के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सिर्फ सजावट का माध्यम नहीं, बल्कि शिक्षा और प्रेरणा का भी स्रोत है, जो हर यात्री के लिए एक अनूठा अनुभव प्रदान करता है।

कला, समुदाय और सामाजिक बदलाव का शक्तिशाली माध्यम

1. सार्वजनिक स्थानों का जीवंत होना और लोगों का जुड़ाव

मेरे अनुभव में, मेट्रो आर्ट सिर्फ सुंदर होने से कहीं अधिक है; यह सार्वजनिक स्थानों को जीवंत बनाती है और लोगों को एक-दूसरे से जोड़ती है। जब मैं दिल्ली के सबसे व्यस्त राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर उतरता हूँ, तो वहाँ की कलाकृतियाँ तुरंत मेरा ध्यान खींच लेती हैं। यह सिर्फ एक आने-जाने की जगह नहीं रहती, बल्कि एक ऐसा स्थान बन जाती है जहाँ लोग कला के माध्यम से जुड़ते हैं, चर्चा करते हैं और शायद अपनी रोज़मर्रा की भागदौड़ से कुछ पल के लिए रुककर कुछ नया महसूस करते हैं। यह कला सामुदायिक भावना को बढ़ावा देती है क्योंकि यह लोगों को साझा अनुभवों और स्थानीय पहचान से जोड़ती है। मैंने कई बार देखा है कि लोग इन कलाकृतियों के सामने रुककर तस्वीरें लेते हैं, एक-दूसरे से उनके बारे में बात करते हैं, और इस तरह एक अनाम भीड़ एक समुदाय में बदल जाती है। यह कला हमें यह एहसास कराती है कि हम सब एक ही शहर के निवासी हैं, और हमारी साझा संस्कृति हमें एक सूत्र में पिरोती है। यह सिर्फ सजावट नहीं, बल्कि एक सामाजिक उपकरण है जो शहरी ताने-बाने को मजबूत करता है।

2. कला के माध्यम से सामाजिक संदेश और जागरूकता

हाल के दिनों में मैंने देखा है कि मेट्रो आर्ट केवल सौंदर्य या इतिहास तक सीमित नहीं है, बल्कि यह महत्वपूर्ण सामाजिक संदेश देने का एक प्रभावी मंच बन गई है। मुंबई मेट्रो में मैंने पानी बचाओ, स्वच्छता अभियान और लैंगिक समानता जैसे विषयों पर बनी कलाकृतियाँ देखी हैं, जो चुपचाप लेकिन प्रभावी ढंग से लाखों लोगों तक अपना संदेश पहुँचाती हैं। यह कला लोगों को सोचने पर मजबूर करती है, उन्हें अपने आस-पास के मुद्दों के प्रति जागरूक करती है, और शायद उन्हें बदलाव लाने के लिए प्रेरित भी करती है। यह सिर्फ एक पेंटिंग नहीं, बल्कि एक आवाज़ है जो समाज की भलाई के लिए बोलती है। यह दिखाता है कि कला कितनी शक्तिशाली हो सकती है जब उसे सही मंच और उद्देश्य मिले। मैं व्यक्तिगत रूप से मानता हूँ कि ऐसी कला न केवल हमारे शहरों को सुंदर बनाती है, बल्कि उन्हें अधिक जागरूक और जिम्मेदार भी बनाती है। यह हमें यह भी याद दिलाती है कि कला केवल गैलरियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन सकती है और हमें बेहतर नागरिक बनने के लिए प्रेरित कर सकती है।

भूमिगत कला: एक सांस्कृतिक पुल और पर्यटन का नया द्वार

1. पर्यटन को बढ़ावा और शहर की ब्रांडिंग

मुझे लगता है कि मेट्रो आर्ट सिर्फ स्थानीय निवासियों के लिए ही नहीं, बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक बड़ा आकर्षण बन गई है। जब कोई पर्यटक किसी नए शहर में आता है, तो वह वहाँ की संस्कृति को गहराई से जानना चाहता है। मेट्रो स्टेशनों पर बनी कलाकृतियाँ उन्हें एक अनूठा और त्वरित सांस्कृतिक अनुभव प्रदान करती हैं। मैंने कई बार विदेशी पर्यटकों को दिल्ली और मुंबई के मेट्रो स्टेशनों पर कलाकृतियों की तस्वीरें लेते देखा है। यह कला शहर की एक विशिष्ट पहचान बनाती है, उसे पर्यटकों के बीच लोकप्रिय बनाती है, और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देती है। यह शहर के “ब्रांड” का एक अभिन्न अंग बन जाती है। यह सिर्फ एक इमारत को सजाने का तरीका नहीं है, बल्कि यह शहर की आत्मा को प्रदर्शित करने का एक माध्यम है जो हर आने वाले को मंत्रमुग्ध कर देता है। मेरा मानना है कि यह कला एक शहर को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का एक शानदार तरीका है, और यह पर्यटकों को बार-बार उस शहर में आने के लिए प्रेरित करती है। यह सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक यात्रा बन जाती है।

2. सांस्कृतिक आदान-प्रदान और वैश्वीकरण

मेट्रो आर्ट सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक अद्भुत माध्यम है। मैंने देखा है कि कैसे कभी-कभी विदेशी कलाकारों को भी भारतीय मेट्रो स्टेशनों पर कलाकृतियाँ बनाने के लिए आमंत्रित किया जाता है, जिससे विभिन्न संस्कृतियों का संगम देखने को मिलता है। यह न केवल भारतीय कला को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित करता है, बल्कि हमें अन्य संस्कृतियों को समझने का अवसर भी देता है। यह वैश्वीकरण के इस युग में सांस्कृतिक दूरियों को कम करने का एक शानदार तरीका है। यह कला हमें यह भी सिखाती है कि कला की कोई भाषा नहीं होती, यह भावनाओं और संदेशों को सीमाओं से परे ले जाती है। मुझे लगता है कि यह सिर्फ एक दीवार पर बनी तस्वीर नहीं, बल्कि एक संवाद है जो दुनिया के विभिन्न हिस्सों के लोगों को एक साथ लाता है। यह हमें यह एहसास दिलाता है कि कला में कितनी शक्ति है जो लोगों को जोड़ सकती है, भले ही वे अलग-अलग पृष्ठभूमि से आते हों।

पहलू पारंपरिक गैलरी कला मेट्रो/सार्वजनिक कला
पहुँच सीमित दर्शकों (जो गैलरी जाते हैं) करोड़ों आम जनता (दैनिक यात्री)
संदेश का प्रभाव अक्सर विशेष, गहरे अर्थ वाले व्यापक, सामाजिक, तुरंत समझ में आने वाले
दृश्य अनुभव जानबूझकर देखने जाना पड़ता है अनिवार्य रूप से यात्रा का हिस्सा बनता है
कलाकार की स्वतंत्रता अधिक व्यक्तिगत अभिव्यक्ति सार्वजनिक हित और सहभागिता का ध्यान

कलाकारों की आवाज़ और शहरी संवाद का मंच

1. नई प्रतिभाओं को अवसर और पहचान

यह बात मुझे बहुत पसंद है कि मेट्रो आर्ट कैसे उभरते हुए कलाकारों को एक बड़ा मंच प्रदान करती है। मैंने कई शहरों में देखा है कि स्थानीय कलाकारों को अपने हुनर ​​का प्रदर्शन करने का अवसर मिलता है, जिससे उन्हें पहचान मिलती है और उनकी कला को लाखों लोग देख पाते हैं। यह सिर्फ कलाकारों के लिए एक आय का स्रोत नहीं, बल्कि उन्हें अपने समुदाय और शहर के साथ सीधे जुड़ने का एक मौका भी देती है। मुझे याद है, एक बार मैंने एक युवा कलाकार से बात की थी जिसने दिल्ली मेट्रो स्टेशन पर अपनी कलाकृति बनाई थी। वह कितनी उत्साहित थी कि उसकी कला हर दिन इतने सारे लोगों द्वारा देखी जा रही है! यह उन्हें अपनी कहानियों को बड़े पैमाने पर साझा करने और शहरी संवाद में भाग लेने की शक्ति देती है। यह उन्हें प्रोत्साहित करता है कि वे अपनी कला के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाएं। यह एक अद्भुत तरीका है कला को elitist दायरे से बाहर निकालकर उसे आम लोगों के जीवन का हिस्सा बनाने का।

2. शहरी विकास में कला का योगदान

मेरा मानना है कि मेट्रो आर्ट सिर्फ दीवारों को सुंदर बनाने से कहीं अधिक है; यह शहरी विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह न केवल सार्वजनिक स्थानों को आकर्षक बनाती है, बल्कि उनमें एक सांस्कृतिक और कलात्मक आयाम भी जोड़ती है। जब कोई शहर अपनी कला को प्रदर्शित करता है, तो यह दिखाता है कि वह सिर्फ ईंट और मोर्टार से नहीं बना है, बल्कि उसमें एक आत्मा और एक समुदाय है। मैंने देखा है कि जिन स्टेशनों पर कलाकृतियाँ होती हैं, वहाँ लोग अधिक सकारात्मक महसूस करते हैं और उन स्थानों को अधिक सम्मान के साथ देखते हैं। यह स्वच्छ भारत अभियान जैसे सरकारी पहलों का भी एक सहज हिस्सा बन सकती है, जहाँ कला के माध्यम से स्वच्छता और सुंदरता का संदेश दिया जाता है। यह शहरों को अधिक रहने योग्य, अधिक मानवीय और अधिक प्रेरणादायक बनाती है। मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है कि कला से भरे स्थान लोगों के मूड को बेहतर बनाते हैं और उनके दैनिक जीवन में सकारात्मकता लाते हैं।

भविष्य की कला और शहरों का स्वरूप

1. डिजिटल कला और इंटरेक्टिव इंस्टॉलेशन का आगमन

अब समय बदल रहा है और इसके साथ ही मेट्रो आर्ट का स्वरूप भी। मैंने देखा है कि अब सिर्फ पेंटिंग ही नहीं, बल्कि डिजिटल प्रोजेक्शन और इंटरेक्टिव इंस्टॉलेशन भी मेट्रो स्टेशनों पर देखने को मिल रहे हैं। यह तकनीक हमें कला के साथ नए तरीकों से जुड़ने का अवसर देती है। सोचिए, एक ऐसी दीवार जो आपकी गति के अनुसार बदलती हो, या एक ऐसी कलाकृति जो आपके स्पर्श से जीवंत हो उठे! यह कला को अधिक गतिशील और आकर्षक बनाती है, खासकर युवा पीढ़ी के लिए। मुझे यह देखकर बहुत खुशी होती है कि कलाकार सिर्फ पारंपरिक माध्यमों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे भविष्य की संभावनाओं को भी तलाश रहे हैं। यह दिखाता है कि कला हमेशा विकसित होती रहती है और नए विचारों को गले लगाती है। यह हमें यह भी सोचने पर मजबूर करती है कि भविष्य में हमारे शहर कैसे दिखेंगे और कला उसमें क्या भूमिका निभाएगी। यह सिर्फ एक trend नहीं, बल्कि कला और प्रौद्योगिकी के बीच एक रोमांचक पुल है, जो हमें नए अनुभवों की ओर ले जाता है।

2. कला के माध्यम से शहरी कल्पना और भविष्य के सपने

भविष्य में मेट्रो आर्ट सिर्फ अतीत या वर्तमान को ही नहीं दर्शाएगी, बल्कि यह हमारे शहरी सपनों और कल्पनाओं को भी आकार देगी। मैंने हमेशा महसूस किया है कि कला में यह शक्ति है कि वह हमें भविष्य की ओर देखने के लिए प्रेरित करे। क्या हम ऐसे मेट्रो स्टेशनों की कल्पना कर सकते हैं जहाँ हर दीवार एक डिजिटल कैनवास हो जो हर दिन बदलता हो, जहाँ हम अपनी पसंद की कलाकृति चुन सकें? यह कला सिर्फ एक गंतव्य तक पहुँचने का माध्यम नहीं रहेगी, बल्कि यह खुद एक यात्रा बन जाएगी, जो हमें हर मोड़ पर कुछ नया अनुभव कराएगी। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हमारे शहर कैसे बेहतर, अधिक सुंदर और अधिक प्रेरक बन सकते हैं। यह हमें एक ऐसे भविष्य की ओर ले जाती है जहाँ कला और जीवन अविभाज्य हों, और जहाँ हर यात्रा एक कलात्मक खोज हो। यह सिर्फ एक विचार नहीं, बल्कि एक दृष्टि है जो हमारे शहरों को अधिक जीवंत और प्रेरणादायक बना सकती है।

निष्कर्ष

जैसा कि हमने देखा, मेट्रो आर्ट सिर्फ दीवारों को सजाने का माध्यम नहीं है; यह हमारे शहरों की धड़कन है, उनकी कहानियों का जीवंत प्रतीक है। यह हमें न केवल सौंदर्य का अनुभव कराती है, बल्कि हमें अपनी जड़ों से जोड़ती है और एक साझा संस्कृति का एहसास दिलाती है। यह रोज़मर्रा की भागदौड़ में एक पल का सुकून देती है, जहाँ कला के माध्यम से हम खुद को और अपने आसपास के समाज को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं। मेरी व्यक्तिगत राय है कि यह कला शहरी जीवन को और भी समृद्ध बनाती है, उसे एक नई पहचान देती है और हमें भविष्य के लिए प्रेरित करती है। यह सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि कला और जीवन का अद्भुत संगम है।

उपयोगी जानकारी

1. अगली बार जब आप मेट्रो में सफ़र करें, तो अपनी आँखें खुली रखें! आपको हर स्टेशन पर कुछ नया और अनोखा कला अनुभव मिल सकता है जो आपकी यात्रा को और भी दिलचस्प बना देगा।

2. मेट्रो आर्ट शहरी कलाकारों और उनकी प्रतिभा को समर्थन देने का एक शानदार तरीका है। यदि आप किसी कलाकृति से प्रभावित होते हैं, तो उसके कलाकार के बारे में जानने की कोशिश करें – यह कला को बढ़ावा देने में मदद करता है।

3. कई शहरों में मेट्रो आर्ट पर guided tours भी उपलब्ध होती हैं, जो आपको इन कलाकृतियों के पीछे की कहानियों और उनके ऐतिहासिक महत्व को जानने का अवसर देती हैं। यह एक अनूठा अनुभव हो सकता है।

4. मेट्रो स्टेशनों पर तस्वीरें लेना एक आम बात है, लेकिन कलाकृतियों की तस्वीरें लेते समय अन्य यात्रियों का ध्यान रखें और उनके रास्ते में बाधा न बनें। कला का आनंद लें और दूसरों को भी लेने दें।

5. आप अपने शहर की मेट्रो आर्ट के बारे में ऑनलाइन शोध कर सकते हैं। अक्सर मेट्रो की वेबसाइटों या स्थानीय पर्यटन पोर्टलों पर इन कलाकृतियों और उनके कलाकारों के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध होती है।

मुख्य बातें संक्षेप में

मेट्रो आर्ट शहरी पहचान, सामुदायिक भावना और सामाजिक जागरूकता का एक शक्तिशाली माध्यम है। यह सार्वजनिक स्थानों को जीवंत बनाती है, पर्यटन को बढ़ावा देती है और नई कला प्रतिभाओं को मंच प्रदान करती है। यह सिर्फ एक सजावट नहीं, बल्कि कला, संस्कृति और शहरी जीवन का एक अभिन्न और विकसित होता हुआ हिस्सा है। यह भविष्य के शहरों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, जहाँ कला और प्रौद्योगिकी मिलकर नए और इंटरैक्टिव अनुभव प्रदान करेंगे।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ) 📖

प्र: सबवे कला को आप किस नज़रिए से देखते हैं, और यह किसी शहर के लिए क्या मायने रखती है?

उ: मेरे लिए, सबवे कला सिर्फ दीवारों पर बने रंगीन चित्र नहीं हैं; यह तो शहर की धड़कन है, उसकी आत्मा का आईना। मैंने हमेशा महसूस किया है कि ये कलाकृतियाँ उस जगह की अनकही कहानियाँ कहती हैं, उसकी सांस्कृतिक विरासत, त्योहारों और रोज़मर्रा की ज़िंदगी की हलचल को जीवंत कर देती हैं। ये केवल दीवारें नहीं हैं, बल्कि वे साँस लेती हैं और आपसे बातें करती हैं। दिल्ली मेट्रो में मेरा पहला अनुभव इसका जीता-जागता उदाहरण है, जहाँ हर पेंटिंग शहर की कहानी बन गई थी।

प्र: आजकल सबवे कला में क्या बदलाव आ रहे हैं और यह किन विषयों पर केंद्रित हो रही है?

उ: समय के साथ सबवे कला ने एक बड़ा बदलाव देखा है, और यह सिर्फ अतीत की गाथाएँ नहीं कह रही। हाल के दिनों में, मैंने गौर किया है कि कलाकार अब समकालीन मुद्दों, सामाजिक न्याय और भविष्य की उम्मीदों को भी अपनी कला के माध्यम से आवाज़ दे रहे हैं। पहले जहाँ सिर्फ ब्रश का कमाल दिखता था, वहीं अब डिजिटल प्रोजेक्शन और इंटरैक्टिव इंस्टॉलेशन जैसे नए माध्यमों का भी इस्तेमाल हो रहा है, जो शहरी जीवन के बदलते स्वरूप का प्रतीक है। यह कला अब और भी ज़्यादा गतिशील और प्रासंगिक हो गई है।

प्र: सबवे कला केवल सौंदर्यीकरण से बढ़कर और क्या भूमिका निभाती है?

उ: सबवे कला का उद्देश्य केवल स्टेशनों को सुंदर बनाना नहीं है; यह उससे कहीं गहरा है। मेरे अनुभव से, यह एक तरह का गहरा सांस्कृतिक आदान-प्रदान है जो हमें सोचने पर मजबूर करता है। यह हमें सिर्फ देखने के लिए नहीं, बल्कि महसूस करने और जुड़ने के लिए प्रेरित करती है। यह हमें अपने शहर को समझने, यह क्या बन रहा है, और हम इसमें कहाँ खड़े हैं, इस पर विचार करने का एक अवसर देती है। यह कला एक जीवंत संवाद है जो शहर और उसके निवासियों के बीच पुल का काम करता है।